
फिल्म: | तीस मार खां |
दर्शकों की पसंद: | |
समीक्षक की रेटिंग: | ![]() ![]() |
मुख्य कलाकार: | अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ, अक्षय खन्ना |
संगीत निर्देशक: | विशाल डडलानी, शेखर रवजियानी |
निर्देशक: | फराह खान |
कहानीफिल्म की कहानी के दो हिस्से हैं। एक में गैंगेस्टर तबरेज है तो दूसरी ओर सुपर स्टार बनने की धुन लिए अतीश। गैंगेस्टर तबरेज मिर्जा (अक्षय कुमार) 'तीस मार खां' के रूप में एक बेशर्म, चोर और ठग के रूप में हैं। जिसके पास अपना गिरोह है। डॉलर, सोडा और बर्गर उसके गैंग के सदस्य हैं। जो उसकी गतिविधियों में भागेदारी करते हैं। इनका काम लोगों को ठगना, बेवकूफ बनाना है। एक दिन इन्हें इनकी जिंदगी का सबसे बड़ी चोरी का मौका मिलता है। इनकी मुलाकात अंतर्राष्ट्रीय प्राचीन वस्तुओं के स्मगलर जौहरी बंधुओं (राजीव और रघु) से होती है। जो इन्हें 500 करोड़ रुपये की पुलिस द्वारा पकड़ी गई प्राचीन वस्तुओं को चुराने का काम देते हैं। क्या वह इस काम को अंजाम दे पाता है? वहीं दूसरी ओर एक सुपर स्टार बनने का सपना संजोये अतीश कपूर (अक्षय खन्ना) एक ऑस्कर जीतने की धुन के साथ जुटा है। उसका मानना है कि अगर उसे एक ऑस्कर मिल जाय तो वो सुपर स्टार बन जाएगा। कैसे वह अपनी इन कोशिशों को अमलीजामा पहनाता है। उसकी प्रेमिका अन्या खान (कैटरीना कैफ) उसकी कैसे मदद करती है। और छोटे से गांव के सारे लोग उसकी योजना पर कैसे अमल करते हैं। क्या उसकी कोशिश कामयाबी होती है? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब का इंतजार है। समीक्षा फिल्म की शुरुआत बहुत सधे अंदाज में होती है। फिल्म देखने पहुंचे दर्शक को शुरुआत में ये फिल्म उम्मीद बंधाती है कि उसे एक अच्छी मनोरंजक फिल्म देखने को मिलेगी। और उसे तीन घंटे का बेहतर मनोरंजन मिलेगा। लेकिन फिल्म जैसे-जैसे गति पकड़ने लगती है। दर्शक हताश होने लगता है। और आखिर में वो सिर पीटते हुए सिनेमाहाल से निकलता है। यही इसका सार है। कुल मिलाकर सीधे कहें तो आगाज अच्छा है लेकिन फिल्म के बढ़ने के साथ निर्देशक की फिल्म पर पकड़ कमजोर होने लगती है। शाहरुख के बिना फिल्म बनाने वालीं फराह शुरुआत में उम्मीद जरूर बंधाती हैं लेकिन बाद में फिल्म का कमजोर निर्देशन बार-बार अखरने लगता है। फिल्म में अक्षय भी टाइप्ड से लगते हैं। उनका अभिनय दर्शकों का ध्यान खींचने में असफल साबित होता है। मध्यांतर के बाद उनके जोक और संवाद अदायगी खास प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं। अक्षय की एक्टिंग और चेहरे के हाव-भाव और दृश्यों में तालमेल का अभाव कई बार साफ दिखाई पड़ता है। फिल्म में कैटरीना भी बेअसर साबित हुईं हैं। कैटरीना पूरे फिल्म में एक्टिंग के नाम पर तमाशा करती नजर आती हैं, जैसे पर्दे पर दिमागरहित सुंदरता। बावजूद इसके 'शीला की जवानी' उनके खाते में एक उपलब्धि जरूर कही जा सकती है। स्टोरी ट्रीटमेंट सच कहें तो कमजोर पटकथा ने पूरे फिल्म की जान निकाल ली है। कहानी में कुछ भी नयापन नहीं है। साफगोई यही है कि कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा टाइप में पूरी कहानी तैयार की गई लगती है। फिल्म में बड़े अजीब ढंग से एक ही शख्स को दो अलग चीजों के लिए एक साथ संघर्ष करते दिखाया गया है। एक का संबंध कहानी से लगता है तो दूसरे फिल्म में हड्डी बजाता नजर आता है। कहने का आशय है कि दो अलग-अलग एंगिल को एक साथ मिलाने का असफल प्रयास किया है। फिल्म के जोक्स और कुछ संवादों को छोड़ दिया जाय तो कुछ भी ऐसा नहीं है जो दर्शकों को खींच सके। हैरत ये कि पात्रों ने इस तरह से किरदार को निभाया है कि चुटकुले और संवाद भी ठंडे ही नजर आते हैं। एक तरह से कहूं तो ऐसा लगता है कि वो अभिनय के नाम पर अराजकता पैदा करने पर उतारू हैं। फिल्म में कोई भी दृश्य ऐसा नहीं बन पड़ा दिखता जिसमें अक्षय और कैटरीना के बीच केमिस्ट्री दिखे। कहानी कहीं से भी ऐसी नजर नहीं आती कि वो दर्शकों में उत्सुकता पैदा कर सके। अक्षय का अपराध अवास्तविक ही नहीं बल्कि मनोरंजन से दूर रहा है। वहीं अक्षय खन्ना कुछ हंसने के मौके जरूर देते हैं। जो पागलपन की हद तक आस्कर जीतने के लिए परेशान है और उसके लिए वो कुछ भी कर सकता है। आखिरकार यही कहा जा सकता है कि फराह को फार्मूलाबद्ध बॉलीवुड मसालों के जरिए सफल होने की कोशिश करने के बजाय कुछ नया करने की कोशिश करनी चाहिए थी। तब शायद वो दर्शकों को खींच पाती। इसके लिए कहानी में बहुत कुछ करने की गुंजाइश थी। अभिनय अफसोस है कि हमको दीवाना कर गए, वेलकम जैसी सफल फिल्में देने वाली अक्षय और कैटरीना की जोड़ी इस बार दर्शकों को निराश कर गई। बॉलीवुड की बेहतरीन जोड़ियों में शुमार अक्षय और कैटरीना के बीच कहीं भी तालमेल नहीं दिखा। पर्दे पर दोनों की जोड़ी रोमांस करने के बजाय जगह तलाशती नजर आई। कैटरीना फिल्म के कई हिस्सों में अपने मेकअप और संवाद दोहराती रहीं। जो बेहद अखरता है। शीला की जवानी के जरिए कैटरीना ने जरूर अपने नाम एक कामयाबी दर्ज कर ली। लेकिन उसके इतर शायद ही कुछ ऐसा था जिसे दर्शक फिल्म देखकर याद रख सकें। हां, अक्षय खन्ना ने जरूर बेहतर करने की कोशिश की है। और उनका चरित्र वास्तविकता को जीता नजर आया। लेकिन इसके बावजूद उनके भी अभिनय में ऐसा कुछ नयापन नहीं था जिससे वह चौका सकें। इतना जरूर है कि उन्होंने दर्शकों को निराश नहीं किया है। निर्देशन ओम शांति ओम और मै हूं ना जैसी सफल फिल्में देने वाली फराह ने दर्शकों को नाउम्मीद किया है। तीस मार खां को देखकर शायद ही किसी को विश्वास हो कि ये फिल्म फराह ने बनाई है। अगर फराह लीक से हटकर संदेशपूर्ण फिल्मों की ओर चलतीं तो शायद उनके खाते में जरूर कुछ प्वाइंट्स होते लेकिन फराह ने शायद जोखिम लेने की जरूरत नहीं समझी और मुंबईया फिल्मी मसालों से ही काम चला लेने की कोशिश की। जिसका नतीजा निकला दर्शकों की बेरुखी। शाहरुख से मुंह मोड़कर तीस मार खां बनने वाली फराह को समझने की जरूरत है कि दर्शक इतना नासमझ नहीं है। उसे भी सोद्देश्यपूर्ण फिल्में चाहिए। उम्मीद है कि निर्देशिका फराह को अब यह बात अच्छे से समझ में आ जाय। संगीत/संवाद संगीत की दुनिया में धूम मचा रहा 'शीला की जवानी' ही एकमात्र ऐसा आकर्षण है जिसके जरिए निर्माता और निर्देशक अपना दर्द भूल सकें। यही वो गाना है जिसकी कोरियोग्राफी दिल को चुराती है। फिल्म की इससे इतर एक और कामयाबी 'वाल्लाह रे वाल्लाह' में छिपी है। इसके जरिए अलग हो चुके कैटरीना और सलमान की जोड़ी पर्दे पर एक साथ फिर दिखाई पड़ी। संवादों को देखकर ये न कहने की कोई वजह नहीं रह जाती कि पूरी फिल्म में मात्र अक्षय ही वास्तविक तीस मार खां साबित हुए। क्या है पॉजिटिव, क्या है निगेटिव हम फिल्म के बारे में कोई अनुशंसा नहीं करना चाहते बशर्ते आप अक्षय और कैटरीना के प्रशंसक हैं तो ही आप ये फिल्म देख सकते हैं। अन्यथा जमकर धूम मचा रहा 'शीला की जवानी' ही वो वजह हो सकती है जिसके लिए आप सिनेमाहाल की तरफ रुख कर सकते हैं। इसमें आपको कैटरीना के बैले के बेहतरीन डांस स्टेप आपका इंतजार कर रहे हैं। जिसमें वो आपका दिल चुराती नजर आएंगी। सलमान के प्रशसंकों के लिए भी एक मौका है जो 'दबंग' के बाद सल्लू का इंतजार कर रहे हैं। अन्यथा सच यही है कि जहां तक संभव है अपना पैसा अगली फिल्म के लिए बचा कर रख लें। |
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